Vedavati Tirth, Sitamai

Vedavati Tirth, Sitamai


वेदवती नामक यह तीर्थ करनाल से 25 कि.मी. दूर करनाल-पिहोवा मार्ग पर सीतामाई ग्राम में स्थित है।
वामन पुराण में इस तीर्थ का विस्तार से वर्णन है। रामायण में इस तीर्थ से सम्बन्धित कथा संक्षेपतः इस प्रकार है कि भगवान शंकर से वर प्राप्त करने के पश्चात् रावण सर्वत्र अत्याचार करता हुआ विचरण करने लगा। भ्रमण करते हुए एक दिन उसने एक तपस्यारत कन्या को देख उससे तप करने का कारण पूछा। उस कन्या ने बताया कि वह राजा कुशध्वज की कन्या है तथा उसका नाम वेदवती है। उसके पिता उसका विवाह भगवान विष्णु के साथ करने के इच्छुक थे। इससे क्रोधित होकर शुम्भ नामक राक्षस ने उसके पिता का वध कर दिया जिससे दुखी होकर उसकी माता भी अग्नि में प्रवेश कर गई। विष्णु के विषय में पिता की संकल्प पूर्ति हेतु ही वह उनको प्राप्त करने के लिए यज्ञ कर रही है- विष्णु निन्दक रावण ये सुनते ही विष्णु की निन्दा करने लगा तथा उसने वेदवती को बताया कि वह पराक्रम में किसी भी प्रकार विष्णु से कम नहीं है। वेदवती ने रावण को विष्णु की निन्दा करने से रोका। इस पर रावण ने उस के केश पकड़ लिए। इस अपमान से वेदवती को इतनी अधिक आत्मग्लानि हुई कि उसने अग्नि में प्रवेश करने का निश्चय किया और रावण से कहा कि वह उसके वधार्थ पुनर्जन्म ग्रहण करेगी। तदुपरान्त उस कन्या ने अग्नि में प्रवेश किया तथा राजा जनक के यहां कन्या रूप में जन्म लिया:
एषा वेदवती नाम पूर्वमासीत्कृते युगे।
त्रेता युगमनुप्राप्य वधार्थं तस्य राक्षसः।
उत्पन्ना मैथिलकुले जनकस्य महात्मनः।
(रामायण, उत्तरकाण्ड 17/38)
जनश्रुतियों के अनुसार सीता इसी स्थान पर धरती में समाई थी। इस तीर्थ के महत्त्व के विषय में वामन पुराण में कहा गया है कि यहां स्नान करने पर व्यक्ति कन्या यज्ञ के फल को प्राप्त करता है तथा सभी पापों से रहित होकर परमपद को प्राप्त करता है:
तस्यास्तीर्थेनरः स्नात्वा कन्यायज्ञफलं लभेत्।
विमुक्तः कलुषैः सर्वै: प्राप्नोति परमं पदम्।
(वामन पुराण 37/13)
इस तीर्थ के पश्चिम में वेदेश्वर नामक सरोवर है जिसमें कार्तिक पूर्णिमा व फाल्गुन की अष्टमी को स्नान का विशेष महात्म्य है। तीर्थ स्थित मन्दिर का निचला भाग ढलाई युक्त ईंटों से निर्मित है जो कि कलायत स्थित मन्दिर जैसा ही है। कलायत मन्दिर की तरह यह मन्दिर भी 7-8वीं शती ई. में बनाया गया प्रतीत होता है।

LOCATION

Quick Navigation