Bhuteshwar Tirth, Jind

Bhuteshwar Tirth, Jind

भूतेश्वर नामक यह तीर्थ जीन्द शहर के मध्य में स्थित है जिसका नाम जींद नगर के आदि देव भूतेश्वर अर्थात् भगवान शंकर के नाम पर पड़ा प्रतीत होता है। महाभारत में वन पर्व के अन्तर्गत कुरुक्षेत्र में स्थित तीर्थों            की शृंखला में इस तीर्थ का वर्णन जयन्ती तीर्थ के नाम से मिलता है, लेकिन वामन पुराण में सोम तीर्थ के पश्चात् इस तीर्थ का महत्त्व भूतेश्वर ज्वालामालेश्वर के नाम से वर्णित है। महाभारत में इसे सरस्वती के तट पर स्थित एक तीर्थ बताया गया है जिसमें स्नान करके मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है।

इस तीर्थ के विषय में दो अलग-अलग मत प्रचलित हैं। एक मतानुसार महाराजा जींद द्वारा निर्मित मन्दिर ही वास्तविक भूतेश्वर ज्वालामालेश्वर तीर्थ है जबकि दूसरे मतानुसार अपराही मोहल्ले में स्थित भूतेेश्वर मन्दिर ही वास्तविक प्राचीन तीर्थ है। विकास की दृष्टि से महाराजा द्वारा निर्मित मन्दिर भव्य एवं विशाल स्वरूप ग्रहण कर चुका है।

महाराजा द्वारा निर्मित मन्दिर जींद शहर के मध्य में स्थित है। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर की भांति इस तीर्थ में स्थित मन्दिर भी सरोवर के मध्य एक अटूट एवं भव्य स्मारक की तरह सुशोभित है। मन्दिर के निर्माण के विषय में यह धारणा प्रचलित है कि जींद के तत्कालीन महाराजा रघुबीर सिंह ने इसे सन् 1857 ई॰ में बनवाया था। जनश्रुति के अनुसार महाराजा रघुबीर सिंह एक बार स्वर्ण मन्दिर को देखने के लिए अमृतसर गए जहाँ पर भारी भीड़ होने के कारण उन्हें दर्शन के लिए काफी प्रतीक्षा करनी पड़ी। तत्पश्चात् उन्होंने स्वर्ण मन्दिर जैसा ही एक मन्दिर अपने नगर में बनवाने का संकल्प लिया तथा नगर में आने पर इस संकल्प को मूर्त रूप दिया। इस मन्दिर का सरोवर रानी तालाब कहलाता हैं क्योंकि राजमहल से तालाब तक सुरंग के माध्यम से रानियाँ स्नान एवं पूजा करने के लिए यहाँ आया करती थीं।

इस मन्दिर से लगभग एक कि.मी. की दूरी पर प्राचीन भूतेश्वर ज्वालामालेश्वर मन्दिर सफीदों गेट पर अपराही मोहल्ले में स्थित है। जनसाधारण इसी मन्दिर को वास्तविक भूतेश्वर ज्वालामालेश्वर तीर्थ मानते है जिसका उल्लेख वामन पुराण में मिलता है। ऐसा मत है कि इस मन्दिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है और यहाँ पर भगवान महादेव स्वयं प्रकट हुए थे।

वामन पुराण के अनुसार भूतेश्वर एवं ज्वालामालेश्वर नाम के इन दोनों लिंगों की पूजा करने वाला मनुष्य पुनर्जन्म ग्रहण नहीं करता। यहाँ पर श्रावण व फाल्गुन मास की महाशिवरात्रि को विशाल मेलों का आयोजन होता है।

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