इस अद्भुत कला से सराबोर होकर अपने आप को समर्पित कर रहा है सरोवर, लोक कला का पर्यटकों के साथ-साथ ब्रह्मसरोवर की लहरें भी स्वागत करती आ रही है नजर
सिर पर पगड़ी हाथ में बीन और ढ़ोल की थाप के साथ जब ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर बीन का लहर बजता है तब सरोवर की लहरें भी अपने आप आकर्षित होती नजर आ रही है। इस अद्भुत कला के आगे सरोवर सराबोर होकर अपने आप को इस लहरा के आगे समर्पित कर रहा है।
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र ब्रह्मसरोवर के तट पर 28 नवंबर से 15 दिसंबर-2024 तक चलने वाले अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में विभिन्न प्रदेशों से आए लोक लोक कलाकारों ने अपनी अदभुत लोक कला से महोत्सव में चार चांद लगाने का काम किया है। इन लोक कलाकारों की अदभुत अनोखी लोक धुन पर पर्यटकों के साथ-साथ ब्रह्मसरोवर की लहरें भी लहरा कर स्वागत करती नजर आ रही है। बीन बांसुरी, नगाड़े वादक, डेरू वादक और कच्ची घोडी, राजस्थानी लोक कला के साथ-साथ अन्य लोक कलाकारों ने महोत्सव में आने वाले पर्यटकों को नाचने पर मजबूर किया है। इस महोत्सव में युवाओं के साथ-साथ बुर्जुग भी इन लोक कलाओं के आगे नतमस्तक होते नजर आ रहे है, महोत्सव में आने वाला प्रत्येक पर्यटक इन लोक कलाओं की धुनों पर नाचने को मजबूर हो रहा है तथा महोत्सव के रंगों को अपने आप में रंगने का काम कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के 17वें दिन ब्रह्मसरोवर के पावन तट पर हजारों की संख्या में पर्यटकों ने इन लोक कलाकारों की लोक कला को बहुत ही ज्यादा सराहा है। ब्रह्मसरोवर के तट पर जहां भी पर्यटक इन लोक कलाकारों की धुन को सुनते है तब उनके पैर अपने आप थिरकने पर मजबूर हो जाते है। इन लोक कलाओं ने इस महोत्सव में एक अलग पहचान बनाने का काम किया है। एनजैडसीसी व प्रशासन की तरफ से आमंत्रित किए गए इन कलाकारों ने बखूबी अपना दायित्व निभाया है और अपनी लोक कला से सभी को मंत्रमुग्ध करने का काम किया है।