शिल्पकार दलीप चौरसिया महोत्सव में पर्यटकों के लिए हाथी उरली का जोड़ा लाए विशेष रुपए से, कीमत रखी 72 हजार रुपए, भगवान बुद्घ की पीतल से बनी मूर्ति भी बनी आकर्षण का केन्द्रकुरुक्षेत्र 15 दिसंबर अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव-2021 के लिए दिल्ली के शिल्पकार दलीप चौरसिया पर्यटकों के लिए हाथी के उपर उरली को बनाकर विशेष तौर पर लाए है। इस हाथी और उरली को प्रवेश द्वार पर सजाया जा सकता है और इसे शुभ भी माना जाता है। इस शिल्पकार ने इस हाथी उरली की कीमत 72 हजार रुपए रखी है। हालांकि शिल्पकार दलीप चौरसियां पर्यटकों के लिए भगवान बुद्घ, नटराजन, बड़ी लक्ष्मी, भगवान श्रीकृष्ण का विराट स्वरुप आदि अन्य प्रतिमाएं भी तैयार करके लाए है। अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव में पिछले कई वर्षों से दिल्ली निवासी दलीप चौरसियां पीतल से बनी मुर्तियों की शिल्पकला को लेकर आ रहे है। इस वर्ष कोरोना महामारी के बाद बेशक दिल में महामारी का दंश था, लेकिन उत्सव के मंच पर आकर शिल्पकार दलीप के चेहरे पर खुशी को देखा जा सकता है। दलीप चोरसिया ने इस वर्ष स्टाल नंबर 44 पर पीतल की मुर्तियां सजाई है। उन्होंने विशेष बातचीत करते हुए कहा कि महोत्सव में पहली बार हाथी के उपर उरली बनाकर लाए है। इस उरली में फुलों की सजावट या फुल भी लगाए जा सकते है। इसे घर के प्रवेश द्वार पर रखना शुभ भी माना जाता है। एक हाथी और उरली की कीमत 72 हजार रुपए रखी है। इस वर्ष 1 लाख 60 हजार रुपए की लागत से भगवान बुद्घ की प्रतिमा, डेढ़ लाख रुपए की लागत से बड़ी लक्ष्मी की प्रतिमा सहित 250 रुपए से लेकर 1 लाख 60 हजार रुपए तक की अलग-अलग पीतल की प्रतिमाएं है। उन्होंने कहा कि पीतल की मूर्ति में पत्थर की नक्काशी से भगवान श्रीकृष्ण के बचपन से लेकर गीता का संदेश देने तक के अलग-अलग 21 स्वरुपों को बखुबी दिखाने का प्रयास किया गया है। इस मूर्ति को अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव में शिल्पकार दलीप चौरसिया तैयार करके लेकर आए है। पीतल की इन मूर्तियों को देखने के लिए हर किसी के कदम सहजता से रुक जाते है। महोत्सव में पिछले कई सालों से आ रहे है और हर बार पर्यटकों के लिए कुछ नया लेकर आते है। इस वर्ष 66 किलोग्राम वजन की भगवान श्रीकृष्ण-राधा की विशाल पीतल की मूर्ति तैयार की है। इस मूर्ति के चारों तरफ पीतल का बार्डर बनाया गया है, इस बार्डर पर भगवान श्रीकृष्ण के जेल-कोठरी में जन्म लेने, मामा कंस को मारते हुए, ताडक़ा को मारते हुए, यशोद्घा मां से डंडे से मार खाते हुए सहित महाभारत तक की लीलाओं को दिखाने का अनोखा प्रयास किया गया है। उन्होंने कहा कि इस प्रतिमा को तैयार करने में एक शिल्पकार को दो महीने का समय लग जाता है और प्रतिमा में लगे पीतल के साथ-साथ पत्थर से मीनाकारी करके सजाया गया भी गया है। इस प्रतिमा के अलावा भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के पीतल से बने रथ के साथ-साथ अलीगढ़ के ताले और अन्य प्रतिमाएं खिलौने और समान तैयार करके लेकर आए है। इस महोत्सव में प्रशासन की तरफ से पुख्ता इंतजाम किए गए है।