कहते हैं कि हौसले बुलंद कर रास्तों पर चल दे तुझे तेरा मुकाम मिल जाएगा। जी हां, इस कहावत को पानीपत निवासी शाहिद खान ने असलियत में बदलकर दिखाया है। दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने हस्त शिल्प को अपनी पहचान बनाई। हस्तशिल्प की बदौलत उन्हें वर्ष 2016 में राज्य अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है। कपड़ों पर हस्तकला के माहिर शाहिद खान अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई होने की उम्मीद लेकर पहुंचे है। शाहिद बताते हैं कि कोरोना काल में जिस तरह से पूरी दुनिया लॉकडाउन हो गई थी, उसी तरह शिल्पकला पर भी लॉकडाउन लग गया। शिल्पकारों के गुजर-बसर का मेले सबसे बड़ा जरिया हैं। मगर पिछले पौने दो साल से कोरोना के चलते मेलों का आयोजन नहीं हो रहा था, जिसके चलते उनके उत्पादों को कद्रदान नहीं मिल रहे थे। शाहिद बताते हैं कि वे आठवीं तक पढ़े हैं। दिव्यांगता के चलते उन्हें पढ़ाई में परेशानी का जरूर सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और हस्तशिल्प की ओर कदम बढ़ाया और उसमें कामयाबी भी हासिल हुई। वे गीता महोत्सव में हाथ से तैयार की गई बेडशीट, मेज कवर, डाइनिंग टेबल कवर, डोरमेट सहित अन्य उत्पाद लेकर पहुंचे हैं। उनकी कीमत 50 रुपये से लेकर 1250 रुपये है। महोत्सव में आने वाले पर्यटक उनके उत्पादों को पसंद कर रहे हैं, उम्मीद है कि कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई हो। हस्तशिल्प में उनकी पत्नी के साथ उनके भाई शेरदीन खान भी मदद करते हैं।