राष्टï्रीय पुरस्कार से नवाजे जा चुके है सहारनपुर के वहीद अहमद, कई देशों का भ्रमण कर अपनी शिल्पकला को मनवा चुके है लोहा, शिल्पकला को जीविंत रखने के लिए कई देशों के कारगिरों को सीखा चुके है अपनी कला
कुरुक्षेत्र 16 दिसंबर अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव के सरस और शिल्प मेले में दूर दराज से आए शिल्पकार अपनी-अपनी शिल्पकला का अदभुत प्रदर्शन कर रहे है और यहां पर दूर-दराज, दूसरे राज्यों व विदेशों से आने वाले पर्यटक इस अनोखी शिल्पकला को देखकर हैरान हो चुके है। इतना ही नहीं इन शिल्पकारों की अदभुत शिल्पकला अपने आप में ही उनकी अनोखी कारगिरी की कहानी को ब्यां करती नजर आ रही है। ब्रह्मïसरोवर के पावन तट पर लगे इस सरस और क्राफ्ट मेले में शिल्पकारों की अनोखी और अदभुत शिल्पकला की गूंज विदेशों में भी सुनाई दे रही है। धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र की पावन धरा पर आने वाला प्रत्येक पर्यटक इस शिल्पकला की प्रशंसा करता नजर आ रहा है।
सहारनपुर यूपी से आए वहीद अहमद ने बताया कि वे अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव में पिछले कई वर्षों से आ रहे है और वे अपने साथ लकड़ी से बने अदभुत कारगिरी का सामान लेकर आए है। उन्होंने बताया कि वे अपने साथ लकड़ी से बने फलावर पोर्ट, कार्नर, स्टूल, काफी सैट, वहील चेयर, अनोखी मैगजीन फोल्डर, पशु तथा पक्षियों की अनोखा सज्जा-सजावट का सामान लेकर आए है और उन्होंने अपना यह सामान ब्रह्मïसरोवर के पावन तट पर स्टॉल नम्बर 109 पर लगाया हुआ है। उन्होंने बताया कि वे इस सामान को पापडी, आम, जमोआ, नीम और साल की लकडी से तैयार करते है। इसके लिए वे पहले इस लकडी को मशीनों से काटकर अच्छा प्रारूप देते है और इसके बाद उस पर अपने हाथ की कारगिरी से सुंदर-सुंदर और आकर्षित करने वाले आकृतियों के सामान तैयार करते है।
उन्होंने बताया कि वे अपनी इस अनोखी अदभुत और अविश्वासनीय शिल्पकला का प्रदर्शन विदेशों में भी कर चुके है और इनकी शिल्पकला का लोहा विदेशी भी मानते है। अपनी शिल्पकला को बचाने के लिए वे देश सहित विदेशों में भी कई लोगों को इस शिल्पकला का प्रशिक्षण देने का काम कर चुके है। इस शिल्पकला को लेकर वह राष्टïीय अवार्ड भी जीत चुके है और पदमश्री अवार्ड के लिए अवार्ड के लिए भी उनके नाम को नामित किया गया है। उनका प्रयास है कि इस शिल्पकला को वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाए ताकि इस शिल्पकलां को जीवंत रखा रखा जा सके।