


अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव–2025 में आज पूर्वोत्तर भारत की पारंपरिक लोक-संस्कृति ने सभी का मन मोह लिया। ढोल की ताल, पारंपरिक परिधानों की अनोखी सुंदरता और नृत्य-मुद्राओं की सहज लय ने पूरे वातावरण को उत्साह, ऊर्जा और आनंद से भर दिया। यह प्रस्तुति केवल नृत्य नहीं थी, बल्कि भारत की विविधता, एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत उत्सव थी, जिसने उपस्थित हर दर्शक के हृदय में प्रेरणा और गर्व की अनुभूति पैदा की।