ययाति नामक यह तीर्थ जींद से 21 कि.मी. की दूरी पर कालवा ग्राम में स्थित है। कुरुक्षेत्र भूमि का यह पवित्र तीर्थ महाराज नहुष के द्वितीय पुत्र ययाति से सम्बन्धित है। इन्हीं सम्राट ययाति की धर्मपत्नी देवयानी से उत्पन्न पुत्र यदु की भावी पीढ़ी में भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तथा इनकी दूसरी पत्नी शर्मिष्ठा से उत्पन्न पुत्र पुरु के वंश में आगे चलकर कौरव और पाण्डव उत्पन्न हुए।
महाभारत के शल्य पर्व में यह स्पष्ट वर्णित है कि महाराजा ययाति ने एक बार इस तीर्थ में यज्ञ सम्पन्न किया था।
ययौ तीर्थ महाबाहुर्यायातं पृथिवीपते।
तत्र यज्ञेययातेश्च महाराज सरस्वती।।
सर्पिः पयश्च सुस्रावानाहुषस्यमहात्मनः।
(महाभारत, शल्य पर्व 41/32-33)
अर्थात् महात्मा नहुष के पुत्र ययाति के द्वारा वहां (यायात तीर्थ में) यज्ञ किए जाने पर सरस्वती ने उनके लिए दूध और घी का स्रोत बहाया था। सरस्वती के प्रति महाराज ययाति की अथाह श्रद्धा एवं भक्ति थी। अपने प्रति महाराजा की इसी अटूट श्रद्धा एवं भक्ति को ध्यान में रखते हुए सरस्वती ने यज्ञ में आने वाले सभी ब्राह्मणों को उनकी अभिलषित वस्तुएं प्रदान की। राजा के यज्ञ के निमित्त आने वाले प्रत्येक ब्राह्मण के लिए सरस्वती ने यथास्थान पृथक्-पृथक् गृह, शैय्या, आसन, भोजन तथा दानादि की व्यवस्था की। देवता एवं गन्धर्व भी यज्ञ में असंख्य बहुमूल्य पदार्थों को देख कर प्रसन्न हुए तो मानव समुदाय को तो महान आश्चर्य होना स्वाभाविक ही था।
वामन पुराण के अनुसार इस यायात तीर्थ में यज्ञ करने वाले के लिए सरस्वती नदी ने मधु बहाया था। इस पुराण में ययाति के स्थान पर तीर्थ को यायात नाम से उल्लिखित किया गया है।
इस तीर्थ का सरोवर तीर्थ के पूर्व में स्थित है जिसमें उत्तर मध्यकालीनं लाखौरी ईटों से निर्मित घाट हैं। एक घाट से दूसरे घाट को पृथक् करने के लिए बीच में एक आठकोणीय बुर्जी का निर्माण किया गया है। सरोवर की सीढ़ियों से लगते हुए मेहराबी कक्ष हैं।