यह तीर्थ ग्राम बोड़श्याम स्थित चैथा तीर्थ है जो विष्णुह्रद, विष्णुपद या वामनक तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। महाभारत और वामन पुराण दोनों में इसका वर्णन उपलब्ध है। महाभारत में कहा है कि विष्णु पद नामक तीर्थ में स्नान करके वामन भगवान की अर्चना करनी चाहिए।
ततो वामनं गच्छेत् त्रिषुलोकेषु विश्रुतम्।
तत्र विष्णुपदे स्नात्वा अर्चयित्वा च वामनम्।।
सर्व पाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति।
(महाभारत, वन पर्व 83/103-104)
वामन पुराण में इसे वामन अवतार तथा राजा बलि से सम्बन्धित बताया है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यों के राजा बलि से तीन पद पृथ्वी माँगी थी और उसक मानमर्दन किया था। तब से यह तीर्थ विष्णुपद के नाम से जाना जाता है यहां ज्येष्ठमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यथाशक्ति स्नान दान करने से मनुष्य को परम पद मिलता है।
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे एकादश्यां उपोषितः।
द्वादश्यां वामनं दृष्ट्वा स्नात्वा विष्णुपदे ह्रदे ।।
दानं दत्वा यथाशक्तया प्राप्नोति परमं पदम्।
(वामन पुराण 31/84)