रामह्रद नामक यह तीर्थ जीन्द से लगभग 12 कि.मी. दूर जींद-हांसी मार्ग पर रामराय ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ को कुरुक्षेत्र भूमि का एकमात्र देवतीर्थ होने का गौरव प्राप्त है।
यह पवित्र स्थल महर्षि जमदग्नि के पुत्र महर्षि परशुराम से सम्बन्धित है, जिनकी गणना भगवान विष्णु के दस अवतारों में होती है। महर्षि परशुराम ने आततायी व अत्याचारी क्षत्रियों के अन्यायपूर्ण व्यवहार से क्रोधित होकर क्षत्रियों का विनाश कर उनके रक्त से इस स्थल पर पाँच सरोवरांे को भर दिया था। महाभारत में इस कथा का वर्णन आता है
ततो रामह्रदानांगच्छेत्तीर्थसेवी समाहितः।
तत्र रामेण राजेन्द्र तरसा दीप्ततेजसा।।
क्षत्रमुत्साद्य वीरेण ह्रदाः पंच निवेशिताः।
पूरयित्वा नरव्याघ्र रुधिरेणेति विश्रुतम्।।
(महाभारत, वन पर्व 83/25-27)
त्रेतायुग की समाप्ति एवं द्वापर युग का प्रारम्भ होने पर महर्षि परशुराम ने क्रोधित होकर क्षत्रियों का विनाश कर समन्त पंचक नामक क्षेत्र में उनके रक्त से पांच सरोवरों (रामह्रद, सन्निहित, सूर्य, कल्याणी, गोविन्द) का निर्माण कर उन्हीं सरोवरों में रक्ताँजलि द्वारा अपने पितरों का तर्पण किया तब उनके पितरों ने प्रसन्न होकर उनसे वर माँगने को कहा। तब परशुराम जी ने आकाश में स्थित अपने उन पितरों को देखकर अंजलिबद्ध होकर कहा कि हे पितरो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो क्रोधावेश में किये हुए क्षत्रियों के विनाश रूपी कृत्य के जघन्य पाप से मुझे मुक्त करें तथा मेरे द्वारा निर्मित ये ह्रद संसार में तीर्थ रूप में प्रसिद्ध हो जाएं। प्रसन्न हुए पितरों ने उन्हें उनका मनोनुकूल वर प्रदान किया। उनके पितरांे ने कहा
ह्रदेष्वेतेषु यः स्नात्वा पितृन्सन्तर्पयिष्यति।
पितरस्तस्य वै प्रीताः दास्यन्ति भुवि दुर्लभम्।
(महाभारत, वन पर्व 83/31)
अर्थात् जो भी व्यक्ति इन सरोवरों में स्नान करके श्रद्धायुक्त चित्त से पितरों का तर्पण करेगा, उसके पितर उससे संतुष्ट होकर उसे संसार में दुर्लभ पदार्थ प्रदान करेंगे एवं उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी। इस प्रकार का वरदान देकर पितरों ने भृगुवंशीय परशुराम का अभिनन्दन किया।
इसी तीर्थ के महात्म्य के विषय में कहा गया कि ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए तथा पवित्र एवं श्रद्धायुक्त चित्त से इन सरोवरों में स्नान करने वाला व्यक्ति अधिक सुवर्ण (अपार धन वैभव) को प्राप्त करता है।
वर्तमान में इस तीर्थ में कपिल, यक्ष, यक्षिणी तथा महर्षि परशुराम के मन्दिर बने हुए हैं। यहां वैशाख, श्रावण तथा कार्तिक मास की पूर्णिमा को मेला लगता है।