पराशर नामक यह तीर्थ करनाल से लगभग 18 कि.मी. दूर बहलोलपुर ग्राम के उत्तर पूर्व में स्थित है। बहलोलपुर नामक ग्राम में स्थित इस तीर्थ का नाम महर्षि वशिष्ठ के पौत्र तथा महर्षि शक्ति के पुत्र पराशर मुनि से सम्बन्धित होने के कारण ही पराशर तीर्थ पड़ा। यही महर्षि पराशर, महाभारत के रचयिता महर्षि व्यास के पिता थे।
महाभारत के आदि पर्व में महर्षि पराशर से सम्बन्धित कथा के अनुसार यह बचपन से ही वेदाभ्यास करते थे। पराशर के जन्म से पूर्व ही कल्माषपाद नामक राजा जो कि महर्षि शक्ति के श्राप से राक्षस हो गया था, ने उनके पिता शक्ति का भक्षण कर लिया था। जब इन्हें अपनी माता से यह ज्ञात हुआ कि एक राक्षस ने इनके पिता का भक्षण कर लिया था तो इनके मन में सम्पूर्ण राक्षस जाति के प्रति अदम्य घृणा उत्पन्न हो गई। अतः पराशर ने राक्षसों के विनाश के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सहस्रों राक्षस जलकर नष्ट हो गए। तब वशिष्ठ एवं पुलस्त्य आदि महर्षियों ने इन्हें रोक कर इनके यज्ञ का निवारण किया। इन्हीं महर्षि पराशर ने बाद में सत्यवती से महर्षि व्यास को उत्पन्न किया जिन्होंने महाभारत एवं अठारह पुराणें की रचना की। लौकिक मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर महर्षि पराशर ने कठोर तपस्या की थी ।
तीर्थ स्थित मन्दिरों की बाह्य एवं आन्तरिक भित्तियों में भित्ति चित्रों की प्रधानता है जिनमें हनुमान, शेर से लड़ता हुआ योद्धा, गणेश, शेषशायी विष्णु, दुर्गा, शिव, पार्वती, राधा-कृष्ण, विष्णु-लक्ष्मी, गीता उपदेश, संन्यासी, बीन बजाता कलाकार आदि के चित्र सम्मिलित हैं। यहाँ तीर्थ सरोवर पर अष्टकोण बुर्जी वालेे लाखौरी ईंटों से निर्मित उत्तर मध्यकालीन घाट हैं।