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Kulottaran Tirth, Kirmach

कुलोत्तारण नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 13 कि.मी. की दूरी पर किरमिच ग्राम के उत्तर में स्थित है।
कुलों का उद्धार करने अर्थात् कुलों को तारने के कारण ही इस तीर्थ का नाम कुलोत्तारण पड़ा। वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ की रचना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी। इस पापनाशक तीर्थ की रचना वर्णान्श्रम धर्म का पालन करने वाले मनुष्यों के निमित्त की गई थी।
ततो गच्छेत् विप्रेन्दास्तीर्थं कल्मष्नाशनम्।
कुलोत्तारण नामानं विष्णुना कल्पितं पुरा।
वर्णनामाश्रमाणां च तारणाय सुनिर्मलम्।
(वामन पुराण 36/74)
वामन पुराण के अनुसार चारों आश्रमों के व्यक्ति इस तीर्थ में स्नान करने से अपने 21 कुलों अर्थात् पीढ़ियों का उद्धार कर देते हैं। पुराण के अनुसार इस तीर्थ के सेवन से व्यक्ति अपने माता एवं पिता दोनों के समस्त वंशों का उद्धार कर देता है। वामन पुराण में इस तीर्थ की महिमा का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि इस तीर्थ का सेवन करने वाला व्यक्ति अपने मातामह (नाना) एवं पितामह (दादा) दोनों के समस्त वंशों का उद्धार कर देता है।
कुलोत्तारणमासाद्य तीर्थसेवी द्विजोत्तम:।
कुलानि तारयेत् सर्वान् मातामह पितामहान्।
(वामन पुराण 37/4-5)
महाभारत में यह तीर्थ कुलम्पुन नाम से उल्लिखित है जो कि कुल को पवित्र करने वाला कहा गया है। लोक प्रचलित विश्वासों के अनुसार इसी तीर्थ पर महाभारत युद्ध के पश्चात् युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में मारे गये योद्धाओं की आत्मा की शान्ति के लिये श्राद्ध एवं पिण्डदान किया था। तीर्थ परिसर बड़े भू-भाग में फैला है। परिसर के उतर में वट वृक्षों के झुंड है जिससे प्राचीन काल में इस तीर्थ के सुन्दर एवं वृक्ष सज्जित परिसर होने के प्रमाण मिलते हैं।

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