International Gita Mahotsav

Dhruv Kund, Dheradu

यव कुण्ड नामक यह तीर्थ कैथल से लगभग 26 कि.मी. दूर धेरडू ग्राम की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।
धेरड़ू में स्थित यह तीर्थ भक्त शिरोमणि धु्रव से सम्बन्धित है। इस तीर्थ का वर्णन वराह पुराण में मिलता है। पौराणिक साहित्य के अन्तर्गत विष्णु पुराण में ध्रुव के जीवन व चरित्र पर पर्याप्त विवरण उपलब्ध होता है।
विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र स्वयंभू के प्रियव्रत एवं उत्तनपाद नाम के दो पुत्र थे। उत्तानपाद के सुरुचि एवं सुनीति नाम की दो पत्नियां थी। सुरुचि से उत्तम एवं सुनीति से धु्रव का जन्म हुआ। राजा उत्तानपाद को सुरुचि एवं उत्तम विशेष रूप से प्रिय थे। पिता के इस एकपक्षीय व्यवहार से दुखी होकर धु्रव शैशव अवस्था में ही गृहत्याग कर तपस्या के लिए चल पड़े। इनके कठोर तप को देखकर भगवान विष्णु ने इन्हें सर्वोच्च स्थान प्रदान किया जो सप्त ऋषियों एवं देवताओं से भी ऊपर था।
लोक प्रचलित मान्यता के अनुसार धु्रव ने इसी स्थान पर रहकर घोर तपस्या की थी। ध्रुव से सम्बन्धित होने के कारण ही यह तीर्थ ध्रुव कुण्ड के नाम से विख्यात हुआ। जनसाधारण में प्रचलित विश्वास के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में यहाँ पूजा अर्चना करने वाले मनुष्य को देवता इच्छित वर प्रदान करते हैं।

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