यह तीर्थ करनाल से लगभग 40 कि.मी. दूर सालवन ग्राम में स्थित है। महाभारत के वन पर्व में इस तीर्थ का उल्लेख शालूकिनी नाम से किया गया है। सम्भवतः शालूकिनी ही कालान्तर में सालवन नाम से प्रसिद्ध हो गया होगा। महाभारत के अनुसार यहाँ स्नान-दान करने से मनुष्य को दस अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है।
ततः शालूकिनीं गत्वा तीर्थसेवी नराधिप।
दशाश्वमेधे स्नात्वा च तदेव फलमाप्नुयात्।।
(महाभारत, वन पर्व, 83/14)
ब्रह्म पुराण में इस तीर्थ के सम्बन्ध में यह कथा मिलती है कि विश्वकर्मा का विश्वरुप नामक एक पराक्रमी पुत्र था। उसका पुत्र भौवन भी पराक्रमी था। सम्राट भौवन ने महर्षि कश्यप के साथ बृहस्पति के बडे भाई संवर्त के पास जाकर ऐसे स्थान के बारे में पूछा जहाँ अश्वमेध यज्ञ निर्विघ्न रूप से सम्पन्न हो सके। उनके आग्रह पर ब्रह्मा जी ने इस स्थान पर अश्वमेध यज्ञ करने को कहा क्यांेकि यहाँ एक अश्वमेध यज्ञ करने से दस अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है।
ततः प्रभृति तत्तीर्थं दशाश्वमेधिकं विदुः।
दशानामश्वमेधानां फलं स्नानादवाप्यते।
(ब्रह्म पुराण 83/29)
वायु पुराण में कहा गया है कि दशाश्वमेध एवं पंचाश्वमेध नामक तीर्थ में श्राद्ध करने पर दश एवं पाँच अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
दशाश्वमेधिकेतीर्थे तीर्थे पंचाश्वमेधिके।
यथोद्दिष्टं फलं तेषां क्रतूनां नात्र संशयः।।
(वायु पुराण 77/45)
ब्रह्म पुराण के अनुसार इस तीर्थ का उल्लेख कुरुक्षेत्र के पवित्र तीर्थों में मिलता है जिससे इस तीर्थ के कुरुक्षेत्र भूमि में होने की पुष्टि होती है।
तीर्थ स्थित मंदिर में चित्रित मूर्तियाँ एवं भित्ति चित्र बने हुए है। तीर्थ सरोवर पर बने उत्तर मध्य कालीन घाटों का वर्तमान में जीर्णोद्धार किया गया है।