“कुरुक्षेत्र की गूंज”
शौर्य की भूमि, धर्म की छाया,
जहाँ हर स्वर में गीता की माया।
केसरिया वेश, पगड़ी की शान,
बजते हैं ढोल, उठता है गान।
शहनाई की तान में रचता है राग,
जल के किनारे, उत्सव का आगाज़।
नृत्य में लहराता है लोक का रंग,
हर थाप में गूंजे भारत का संग।
कुरुक्षेत्र की मिट्टी, वीरों की बात,
हर कलाकार में दिखे परंपरा की जात।
गीतों में गाथा, सुरों में इतिहास,
यह दृश्य है जैसे संस्कृति का प्रकाश।
गगन के तले, जल के किनारे,
बजते हैं भाव, दिलों के सहारे।
यह केवल नृत्य नहीं, यह है वंदन,
भारत की आत्मा का मधुर स्पंदन


