


अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव–2025 में आज ग्रामीण हुनर, लोक-कला और हस्तशिल्प ने पूरे वातावरण को जीवंत कर दिया। पारंपरिक करघों पर बुनी जाती विरासत, हाथों से बने शिल्प, खिलौने और ज्वेलरी—हर स्टॉल भारत की समृद्ध संस्कृति और वर्षों पुराने कौशल की कहानी कह रहा था। विद्यार्थियों और आगंतुकों ने उत्सुकता से न केवल इन कलाओं को देखा, बल्कि कारीगरों की मेहनत, रचनात्मकता और उनकी परंपरागत तकनीकों को करीब से समझा। यह दृश्य स्पष्ट करता है कि भारत की आत्मा उसके कारीगरों और उनकी अमूल्य कला में बसती है।