अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव में पुरूषोत्तमपुरा बाग में बनाये गये सांस्कृतिक मंच पर उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र पटियाला द्वारा विभिन्न राज्यों की लोक संस्कृति को परिभाषित करते हुए लोक नृत्य प्रस्तुत किये गये, जिसका पर्यटकों ने खूब आनन्द उठाया। कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के नृत्य मयूर ने सभी का मन मोह लिया और दर्शकों को अपने मोह पाश में बांध लिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सबसे पहले उड़ीसा से आये लोक कलाकारों ने गोटी पुआ की प्रस्तुति दी। उसके बाद मध्य प्रदेश से आये कलाकारों द्वारा पारम्परिक नृत्य गणगौर किया गया, जिस पर पंडाल में बैठे सभी पर्यटकों ने खूब तालियां बजाई। जैसे ही अगली प्रस्तुति के लिये पारम्परित वेशभूषा पहने हुए सिक्किम के कलाकारों ने तमंग सैलो नृत्य किया तो पूरा माहौल असम की सुंदर वादियों की तरह खुशनुमा हो गया। इसी प्रकार बरसाने की मोर कुटी में मोर बन आयो रसिया के शब्दों पर मयूर नृत्य पेश किया गया तो सभी पर्यटक भक्ति की भावना में बहने लगे। इतना ही नहीं पंडाल में कईं बुजुर्ग श्रद्घालू कृष्णमय होकर झूमने लगे। अगली प्रस्तुति राजस्थान के कलाकारों ने तपंग वादन की दी, जिसने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। जैसे ही उन्होंने प्रेम की बात जमाने में निराली देखी, प्रेम से खिली प्रेम की डाली देखी, शेर के साथ गायन शुरू किया तो पंडाल तालियों की गडगड़हाट के साथ गूंज उठा। साम्प्रदायिक सदभाव पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने अपनी प्रस्तुति में कहा कि हाथों में गीता, सीने में कुरान रखेंगे, लेकिन सबसे आगे अपना हिन्दुस्तान रखेंगे, की बात पर सभी देशभक्ति की भावना में बहने लगे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में मणिपुर के कलाकारों द्वारा राधा-कृष्ण के प्रसंगो पर आधारित मणिपुर रास किया गया। इसी प्रकार बिहार के कलाकारों ने पारम्परिक नृत्य जीजिया की प्रस्तुति दी। असम से आये कलाकारों ने भी अपनी नृत्यावली के माध्यम से कृष्ण लीला करके राधा-कृष्ण की विभिन्न लीलाओं से पर्यटकों को रूबरू करवाया। पश्चिम बंगाल के कलाकारों द्वारा लोक नृत्य नटवा, झारखंड के कलाकारों द्वारा पुरूलिया छाउ के माध्यम से महिषासुर मर्दनी प्रसंग का सजीव चित्रण किया और अंत में गुजरात के कलाकारों ने मेवासी नृत्य के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति से सभी को परिचित करवाया।