अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव-2023 में बिहार से आए शिल्पकार मुस्तफा, जिन्होंने महोत्सव में स्टॉल नंबर 49 पर अपने उत्पादों को सजाया है। इस शिल्पकार द्वारा अपने स्टॉल पर बिहार की पारम्परिक साड़ी के साथ-साथ अन्य उत्पादों को भी पर्यटकों के लिए रखा है। इन साडिय़ों में कतंसली, टीशू, मधुबनी कलाओं से बनी साडिय़ां भी शामिल है। मधुबनी कला की कोशा मैटिरियल से बनी साड़ी, कंतसली कला की साड़ी जिसमें जरी का काम भी होता है, के साथ-साथ टीशु कला से बनी साडिय़ा जिसमें दो प्रकार की साडिय़ा शामिल है को प्रदर्शित किया गया है। टीशु कला में हाथ से पेंटिंग करके बनाई गई साड़ी और दूसरी मल्टी कलर से स्क्रीन प्रिटिंग के माध्यम से तैयार की जाती है। टीशु की साडिय़ां प्राकृतिक टीशु और गेंजा के धागे को मिलाकर बनती है। इन साडिय़ों में हाथ से बनी जूट व सिल्क की साडिय़ां भी शामिल है। इन साडिय़ों की कीमत 10 हजार रुप से लेकर 15 हजार रुपए तक रखी गई है।
शिल्पकार मुस्तफा ने बताया कि साडिय़ां बनाने का यह काम वह पिछले 9 सालों से कर रहे है। उन्होंने यह कला अपने बड़े-बुर्जुगों से सीखी है। यह एक पारम्परिक कला है। इस महोत्सव के अलावा वह दिल्ली के सूरजकुंड मेले, प्रगति मैदान, मुंबई, चेन्नई, बनारस, इलाहाबाद, पटियाला, लुधियाना, गोवा में भी अपनी इस शिल्पकला का प्रदर्शन कर चुके है और गीता महोत्सव के साथ-साथ इन स्थानों पर भी लोग उनके उत्पादों को काफी पसंद करते है।