International Gita Mahotsav

INTERNATIONAL GITA MAHOTSAV

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प्राकृतिक खेती: रासायनिक और जैविक खेती का एक प्रबल विकल्प

कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के राज्य स्तरीय प्रदर्शनी में कृषि कल्याण विभाग द्वारा प्राकृतिक खेती के महत्व को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया। कृषि विभाग के सहायक तकनीकी प्रबंधक जितेंद्र कुमार ने बताया कि रासायनिक खेती से हमारे प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक शोषण हो रहा है, और इसके कारण भूमि, पशु, पक्षी, पौधे और मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए, प्राकृतिक खेती को अपनाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।

प्राकृतिक खेती, जैविक खेती से अलग होते हुए, खेतों में रासायनिक खादों का उपयोग नहीं करती है। इसके बजाय, यह जीवामृत और घनजीवामृत जैसे जीवाणुओं के कल्चर का उपयोग करती है, जो पौधों को प्राकृतिक पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। यह न केवल भूमि की सेहत को बेहतर बनाता है बल्कि फसलों की बढ़वार और पैदावार में भी वृद्धि करता है। इस पद्धति में, प्राकृतिक खादों से कृषि भूमि में नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले जीवाणु बढ़ते हैं, और केंचुए भूमि के निचले सतह से पोषक तत्व लेकर पौधों तक पहुंचाते हैं।

जितेंद्र कुमार ने यह भी बताया कि प्राकृतिक खेती में कोई भी रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया जाता है, बल्कि यह पूरी तरह से प्राकृतिक स्रोतों से पोषण प्राप्त करती है। एक देसी गाय से 30 एकड़ तक की खेती की जा सकती है, और इसमें किसी भी तरह का बाजार से खरीदी गई सामग्री का उपयोग नहीं होता है, जबकि जैविक खेती में यह खर्च अधिक होता है।

प्राकृतिक खेती में कुछ विशेष तकनीकों को अपनाने से, जैसे कम से कम जुताई, फसल अवशेषों का उपयोग, मल्चिंग, और ड्रिप सिंचाई, खेत में जीवाणुओं और केंचुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है, जो फसलों की वृद्धि में सहायक होते हैं। इस प्रक्रिया से न केवल भूमि की उर्वरता बढ़ती है बल्कि यह पर्यावरण को भी बेहतर बनाती है।

कृषि विभाग की इस पहल का उद्देश्य किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभों से अवगत कराना और उन्हें रासायनिक खेती के हानिकारक प्रभावों से बचाना है, ताकि कृषि क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि लाई जा सके।

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