Machkruk Yaksha, Sikh

Machkruk Yaksha, Sikh

यह तीर्थ पानीपत से लगभग 38 कि.मी. की दूरी पर तथा सफीदों से 14 कि.मी. की दूरी पर सींख नामक गांव में स्थित है। महाभारत में वर्णित चार यक्षोें में से यह तीर्थ मचकु्रक नामक यक्ष को समर्पित है।
तरंतुकारंतुकयोर्यदंतरंरामह्रदानांच मचकु्रकस्य च।
एतत्कुरुक्षेत्रा, समन्तपंचकं अथवा पितामहस्योत्तरवेदिरुच्यते।
(महाभारत, वन पर्व 83/208, शल्य पर्व 53/24)
अर्थात् तरन्तुक, अरन्तुक, रामह्रद (कपिल) तथा मचक्रुक नामक यक्षों का प्रदेश कुरुक्षेत्र, समन्तपंचक अथवा पितामह ब्रह्मा की उत्तर वेदि कहलाता था।
मचक्रुक नामक यह यक्ष कुरुक्षेत्र की दक्षिणी पूर्वी सीमा का द्वारपाल है। महाभारत में वन पर्व में इस के महत्त्व को बताते हुए लिखा है।
तीर्थ परिसर में एक यक्ष कुण्ड है। यहाँ प्राचीन काल में कोई मन्दिर था जिसकी नींव के अवशेष आज भी तीर्थ के दक्षिणी भाग में पाए जाते हैं। यक्ष कुण्ड तीर्थ के पूर्व में स्थित है। वर्तमान कुण्ड के निर्माण लाखौरी ईंटों का प्रयोग हुआ है। यहां स्त्री पुरुषों स्नान के लिए अलग-अलग घाट बने हुए हैं। इस यक्ष की एलैंक्जंेडर कन्निघंम ने महाभारत में वर्णित मचक्रुक यक्ष के रूप में पहचान की थी। कुरुक्षेत्र के दक्षिण में प्रवाहित दृषद्वती नदी के किनारे स्थित इस तीर्थ की स्थिति पुराणों में वर्णित है।
तीर्थ पर सोमवती अमावस्या, सूर्यग्रहण, जन्माष्टमी तथा कार्तिक मास की पूर्णिमा को मेले लगते हैं।

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