बिजली के चाक पर बने मिट्टी के बर्तनों से सजा ब्रहमसरोवर का पावन तट

बिजली के चाक पर बने मिट्टी के बर्तनों से सजा ब्रहमसरोवर का पावन तट

शिल्पकार के मिट्टी की कला के मुरीद हुए महोत्सव में आने वाले पर्यटक, शिल्पकार स्वरोजगार के साथ-साथ अन्य लोगों को भी सीखा रहे है अपना पुश्तैनी काम
कुरुक्षेत्र के गांव किशनपुरा के रहने वाले पंकज प्रजापति सबके लिए स्वरोजगार प्रेरक बन रहे हैं। वे अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में ब्रह्म सरोवर के तट पर अपने मिट्टी के बर्तनों को बेच ही नही रहे हैं बल्कि दूसरों को भी बिजली के चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाकर इस कला में पारखी बना रहे हैं।
पंकज प्रजापति ने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाना उनका पुश्तैनी काम है। उनके पिताजी भी यही काम करते आए हैं और अब भी गांव में वह यह काम करते हैं लेकिन उन्होंने आधुनिकीकरण के इस जमाने में और प्रतियोगिताओं के दौर में अपने बर्तनों को नया रूप देते हुए इन्हें आज के बाजार में उतारा है। यही नहीं इस कला में वह दूसरों को भी अवगत करा रहे हैं और मात्र 50 में कोई भी इनके पास मिट्टी के बर्तन बनाने की कला सीख सकता है। पंकज ने बताया कि वह पिपली के पास गांव किशनपुरा के रहने वाले हैं और विगत 6 साल से ब्रह्मसरोवर के तट पर अपने बर्तनों की प्रदर्शनी लगाकर इन्हें सेल भी कर रहे हैं। वह अपने पास मिट्टी की तस्वीरों के साथ-साथ मिट्टी के मुकोठे, तुलसी गमले, रिंग बेल फ्लावर पॉट, वॉटर बॉल इत्यादि रखे हुए हैं। पहले मिट्टी के बर्तन सीधे चाक पर बनाए जाते थे लेकिन आधुनिक जमाने में अपने आप को स्थापित करना बड़ी चुनौती है इसलिए वह इन्हें नए-नए आकार देकर और इन पर पॉलिश मिट्टी की पॉलिश करके इन्हें साफ सुथरा बनाते हैं ताकि यह और अधिक आकर्षक बन सके।
उन्होंने बताया कि उनके इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी नीरज भी हाथ बता रही हैं। पंकज ने बताया कि वह अपने यहां बिजली के चाक भी बनाते हैं जिसके ऊपर मिट्टी के बर्तन बनाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पिताजी और उनके पूर्वज पहले मिट्टी के बर्तनों को हाथ के चक्र पर बना देते लेकिन आज के समय में यह चक बिजली का बनाया हुआ बाजार मिलता है किसी भी स्वयं भी तैयार करते है और लोगों को बेचते भी हैं उन्होंने कहा कि कई स्कूलों और विश्वविद्यालय उनके यहां से मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए बिजली का चैक लेकर गए है।
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