कापालिक शैली में पंडवानी एकल नाटक गायन कथा को छत्तीसगढ़ की समप्रिय पूजा निशाद जिंदा रखे हुए है। वे ब्रहमसरोवर पर आयोजित अन्र्तराष्टï्रीय गीता महोत्सव में अपनी गायन शैली से सबको भाव विभोर कर गीता के महत्व के बारे में बता रहे हैं। समप्रिय पूजा निशाद महाभारत कथा गायन में सभी को पूरा कथा वृतांत सुना रही हैं। उन्होंने बताया कि ये शैली हरियाणा के सांग से मिलती जुलती शैली है जिसमें एक ही कलाकार प्रत्येक कलाकार के संवाद बोलकर भाव भंगिमाएँ करता है।
उन्होंने बताया कि वे रंगमंच से जुड़ी हुई कलाकार है। यह शैली पद्मश्री पूना राम निशाद ने शुरु की थी और इसे पदमश्री डॉ. तीजन बाई ने भी बहुत आगे बढ़ाया था। समप्रिय ने बताया कि वे इस शैली में महाभारत कथा गायन को लंदन, जापान सहित देश के अनेक राज्यों में आयोजित कार्यक्रमों में लेकर गई हैं। उन्होंने बताया कि इस शैली में नृत्य नाटिका करते समय गायक और गायिका एक ही कपाल में विद्यमान रहते हैं। इसलिए इसको कापालिक शैली कहा जाता है। युवा पीढ़ी को हमारी इन शैलियों को जिंदा रखने के लिए आगे आना चाहिए। उनके साथ इस कार्यक्रम में विभिन्न वाद्य यंत्र बजाने वाले कलाकार भी साथ में बैठते हैं।
समप्रिय पूजा निशाद ने बताया कि जिस तरह से सांस्कृतिक परम्पराओं को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में ले जाने का काम किया है उससे कई अंजान बातों का भी पता लगता है। लोक समृति के मानस पटल पर पंडवानी एकल नाटक पर छाप छोडऩा उनका लक्ष्य है। यह छत्तीगढ़ की सांस्कृतिक परम्पराओं को आगे बढ़ाने का एक अच्छा प्लेटफार्म है। पंडवानी विद्या में दो शैलियां प्रचल्लित है जिनमें एक वेदमति शैली भी है। यह शैली बैठकर गाने की शैली है। कापालिक शैली में कलाकार खड़े होकर अभिनय सहित मंच पर कलाकार जोहर दिखाता है।