अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में जहां विभिन्न राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कार प्रमाण पत्र प्राप्त शिल्पकार अपनी शिल्पकला को प्रदर्शित कर रहे है, वहीं विभिन्न स्वयं सहायता समुहों के माध्यम से अपने-अपने छोटे-छोटे स्वरोजगार चलाने वाले समूहों ने भी अपने स्टॉलों को स्थापित किया हुआ है। इन्ही में स्टॉल नंबर 60 पर अपने आचार के उत्पादों को सजाए हुए है कृष्ण कुमार, जो कि पिछले 15 वर्षों से इस महोत्सव में अपना स्टॉल स्थापित करते आए है। अहम पहलू यह है कि यह महोत्सव छोटे-छोटे शिल्पकारों व स्वयं का रोजगार स्थापित करने वाले लघु उद्यमियों के लिए भी एक मुख्य मंच बनकर सामने आया है और इसके माध्यम से उनके व्यवसाय को खुब बढ़ावा मिल रहा है।
कृष्ण कुमार ने बातचीत करते हुए कहा कि उनके स्टॉल पर विभिन्न प्रकार के आचार और मुरब्बे मौजूद है। उनकी टीम द्वारा देसी तरीके से बिना कैमिकलों का इस्तेमाल करके विभिन्न मसालों के माध्यम से यह आचार तैयार किया जाता है और महोत्सव में आने वाले पर्यटक उनके आचार को बहुत ही चाव से खाते है और अपने घर के लिए खरीदकर भी लेकर जाते है। इन आचारों और मुरब्बों का घरेलू स्वाद इनकी पहचान है। ये पूरी तरह से प्राकृतिक और रसायन मुक्त प्रक्रिया से बनाए जाते हैं और इन्हें ताजा रखने के लिए इनमे कोई प्रिजर्वेटिव्स का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ये पूरी तरह से स्वच्छ वातावरण और प्रक्रिया से बनाए जाते है।
उन्होंने कहा कि उनके अचारों के पिटारे में आम, नींबू, गाजर, राई वाली मिर्च, लाल मिर्च, आंवले, करोंदे, बंबू, टिंड, अदरक, मशरूम, कच्ची हल्दी, ढेउ, खट्टा मीठा नींबू, कटहल, लहसुन, सवांझने, बारीक टिंड, हर्ड, अठाना वाली मिर्च और मिक्स अचार शामिल है। साथ-साथ बेलपत्र, बांबू, एप्पल, अमले, चेरी और गाजर के मुरब्बे, लहसुन अदरक की चटनी, आंवले की चटनी और आंवला कैंडी भी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है। इन अचारों में स्वदेशी स्वाद है और ये पूरी तरह से शुद्ध और जैविक मसाले का उपयोग करके बनते हैं,
