यह तीर्थ करनाल से लगभग 30 कि.मी. दूर करनाल-कैथल मार्ग के समीप बस्थली ग्राम में स्थित है। व्यास स्थली नामक इस तीर्थ का सम्बन्ध महर्षि व्यास से है जो पराशर के पुत्र और महाभारत के रचयिता थे।
वामन पुराण और महाभारत के अनुसार महर्षि व्यास अपने पुत्र शुकदेव के गृहत्याग से बहुत दुखी हुए और उनके मन को अस्थिर कर दिया। इसलिए वे कैलाश पर्वत जाकर अपने पुत्र का नाम लेकर जोर-जोर से पुकारने लगे। शिव द्वारा शांत किये जाने से महर्षि व्यास इस स्थान पर आ कर रहने लगे। तभी से इसका नाम व्यास-स्थली पड़ा। यहाँ स्नान-दान करने से हजारों गऊओं के दान का फल मिलता है तथा इस तीर्थ के सेवन से व्यक्ति को कभी पुत्र शोक नही होता है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत एवं वामन पुराण दोनो में लगभग एक जैसा है। महाभारत में इस तीर्थ का महत्त्व इस प्रकार वर्णित है:
ततो व्यासस्थली नाम यत्र व्यासेन धीमता।
पुत्रशोकाभितप्तेन देहत्यागे कृता मतिः।
ततो देवैस्तु राजेन्द्र पुनरुत्थापितस्तदा।
अभिगत्वा स्थलीं तस्य गोसहस्रफलं लभेत्।
(महाभारत, वन पर्व 83/96-97)
अर्थात् इस व्यास स्थली नामक तीर्थ मंे जाने पर व्यक्ति सहस्र गौ दान करने का फल प्राप्त करता है। वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ में जाने पर व्यक्ति पुत्र शोक को प्राप्त नहीं करता है।
अभिगम्य स्थलीं तस्य पुत्रशोकं न विन्दति।
(वामन पुराण 36/59)
तीर्थ परिसर में भगवान कृष्ण द्वैपायन व्यास को समर्पित एक मन्दिर है।