त्रिगुणानन्द नामक यह तीर्थ करनाल से लगभग 31 कि.मी. दूर गुनियाना ग्राम में स्थित है। लौकिक आख्यान इस तीर्थ का सम्बन्ध सात प्रमुख महर्षियों भारद्वाज, जमदग्नि, कश्यप, विश्वामित्र, वशिष्ठ एवं अत्रि में से एक गौतम ऋषि से जोड़ते हैं।
प्रचलित जनश्रुति के अनुसार इसी स्थान पर महर्षि गौतम ने तपस्या की थी। महाभारत में उपलब्ध वर्णन के अनुसार महर्षि गौतम का अन्यान्य ऋषियों के साथ अर्जुन के जन्मोत्सव पर शुभागमन हुआ था। द्रोण पर्व में ऐसा उल्लेख मिलता है कि इन्होंने महाभारत युद्ध में भीषण नरसंहार को रोकने के लिए आचार्य द्रोण के पास जाकर उनसे युद्ध बन्द करने को कहा था। महर्षि गौतम ने पारियात्र नामक पर्वत पर साठ सहस्र वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। रामायण में भी इन ऋषि का विशेष वर्णन है। इन्होंने अपनी पत्नी अहिल्या को शिला होने का श्राप दिया था जिसका बाद मंे श्रीराम के पवित्र चरणारविन्द के स्पर्श से उद्धार हुआ। महाभारत में शरद्वान एवं चिरकारी नामक इनके दो पुत्रों का उल्लेख है। रामायण एवं महाभारत में उल्लेखित यह तीर्थ 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि के महत्त्वपूर्ण तीर्थों में से एक है।
इस तीर्थ पर शिवरात्रि के अवसर पर भारी मेला लगता है। तीर्थ पर एक सरोवर है जिसके पश्चिमी तट पर एक सुन्दर लाखौरी ईंटों व मेहराबों से सुसज्जित प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार से घाट की प्रथम सीढ़ी वाले तल पर दोनों ओर दो दो मेहराबी कक्षों का निर्माण हुआ है। सरोवर पर स्थित घाट में उत्तर मध्यकालीन अष्टकोण आकृति वाली बुर्जियाँ हैं।