पृथ्वी तीर्थ करनाल से लगभग 18 कि.मी. दूर बालू नामक ग्राम में स्थित है। महाभारत के तीर्थों के क्रमिक वर्णन में पारिप्लव तीर्थ के तुरन्त पश्चात् पृथ्वी तीर्थ का नामोल्लेख मिलता है।
महाभारत में इस तीर्थ के धार्मिक महत्त्व को वर्णित करते हुए कहा गया है कि इस तीर्थ में जाने पर सहस्र गोदान का फल मिलता है।
पृथिव्यास्तीर्थमासाद्य गोसहस्रफलं लभेत्।
(महाभारत, वन पर्व 83/12)
वामन पुराण में भी इस तीर्थ की धार्मिक महत्ता का स्पष्ट रूप से वर्णन करते हुए कहा गया है कि यह तीर्थ सभी पापों का नाश करने वाला तथा पृथ्वी पर किए गए सभी पापों को स्नान मात्र से दूर करने वाला है।
धरण्यास्तीर्थमासाद्य सर्वपापविमोचनम्।
क्षान्तियुक्तो नरः स्नात्वा प्राप्नोतिपरमं पद्म।
धरण्यामपराधनि कृतानि पुरुषेण वै।
सर्वाणि क्षम्यते तस्य स्नातमात्रस्य देहिनः।
(वामन पुराण 34/19-20)
इस तीर्थ से सम्बन्धित प्रचलित एक अन्य जन कथा इस प्रकार है कि यहाँ पर वाल्मीकि ऋषि ने तपस्या की थी तथा यहाँ बाल्मीकि ऋषि के आश्रम में सीता जी ने अपना परित्यक्त जीवन बिताया था। लवकुश का जन्म भी यहीं हुआ था। सम्भवतः बाल्मीकि ऋषि के नाम पर ही इस गाँव का नाम बालू पड़ा है। तीर्थ पर कार्तिक मास की अमावस्या को मेला लगता है। इस तीर्थ सरोवर में स्नान करने से मनुष्य सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।