अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में भारत की शिल्पकला और पारंपरिक नृत्य के अलावा एक और विशेष आकर्षण बना है – प्राकृतिक अगरबत्तियों की महक। यह महक पूरे महोत्सव में छाई हुई है, जो श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक बनकर वातावरण को सुगंधित कर रही है।
राजेंद्र कुमार, जो अगरबत्ती का लघु कारोबार करते हैं, ने बताया कि उन्होंने पूरी तरह प्राकृतिक सामग्री और फूलों का इस्तेमाल करके ये अगरबत्तियां बनाई हैं। खास तौर पर कस्तूरी का इस्तेमाल ठंडे मौसम में अतिरिक्त सुगंध प्रदान करता है। उनका कहना है कि इन अगरबत्तियों का उपयोग न केवल घरों और मंदिरों में पूजा के दौरान होता है, बल्कि यह श्रद्धालुओं को मानसिक शांति भी प्रदान करती है।
हर साल की तरह, इस महोत्सव में उनकी अगरबत्तियों की बिक्री भी शानदार रही है। महोत्सव में उन्हें मिलने वाली सराहना और ग्राहकों से मिल रही प्रतिक्रिया उनके काम को और भी प्रेरणादायक बनाती है। इन प्राकृतिक अगरबत्तियों की कीमत 30 रुपए से लेकर 100 रुपए तक है।
इस महोत्सव के दौरान पर्यटकों को प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति से जुड़ी शिल्पकला के साथ-साथ धार्मिक और प्राकृतिक उत्पादों का अनुभव हो रहा है, जो भारतीय संस्कृति की समृद्धता को दर्शाता है।
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