ब्रह्मयोनि नामक यह तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 28 कि.मी. की दूरी पर सरस्वती नदी के तट पर पिहोवा में स्थित है ।
कुरुक्षेत्र के तीर्थों में से अधिकांश का सम्बन्ध त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश से रहा है। ब्रह्मा से सम्बन्धित तीर्थों में ब्रह्मसर, ब्रह्मस्थान, ब्रह्मोदुम्बर, ब्रह्मतीर्थ एवं ब्रह्मयोनि प्रमुख हैं। इस तीर्थ का नाम एवं महत्त्व महाभारत तथा वामन पुराण दोनों में ही उपलब्ध होता है। महाभारत में वर्णित इसका महत्त्व इस प्रकार है:
ब्रह्मयोनिं समासाद्य शुचिः प्रयतमानस:।
तत्र स्नात्वा नरव्याघ्र ब्रह्मलोकं प्रपद्यते।।
पुनात्या सप्तमं चैव कुलं नास्तयत्र संशयः।
(महाभारत, वन पर्व 83/140-141)
अर्थात् शुद्ध, संयमित एवं पवित्र चित्त से ब्रह्मयोनि तीर्थ में स्नान करने वाला व्यक्ति ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है तथा निःसन्देह अपने कुल का उद्धार करता है। वामन पुराण के अनुसार उक्त तीर्थ का निर्माण ब्रह्मा ने सरस्वती के तट पर किया था।
तत्रैव ब्रह्मयोन्यस्ति ब्रह्मणा यत्र निर्मिता।
पृथूदकं समाश्रित्य सरस्वत्यास्तटे स्थितः।।
(वामन पुराण 39/21)
वामन पुराण के अनुसार यहाँ ब्रह्मा के चिन्तन से चारों वर्ण उत्पन्न होकर विभिन्न आश्रमों में स्थित हो गए थे। महाभारत वन पर्व में इस तीर्थ का उल्लेख विश्वामित्र तीर्थ के पश्चात् मिलता है तथा वामन पुराण में इस का वर्णन पृथूदक तीर्थ के बाद किया गया है। इस तीर्थ के उत्तर की ओर सरस्वती तीर्थ तथा दक्षिण में पृथूदक तीर्थ है। इस तीर्थ पर शनिवार को किया गया स्नान मोक्षदायी माना जाता है।