ब्रह्म नामक यह तीर्थ करनाल से लगभग 39 कि.मी. दूर सावंत ग्राम में स्थित है। कुरुक्षेत्र के सभी तीर्थ ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवों में आस्था के प्रतीक हैं। इस तीर्थ का वर्णन भी महाभारत और पौराणिक साहित्य में मिलता है। इस तीर्थ में स्नान करने से ब्राह्मणेतर मानव ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जाता है।
ततो गच्छेत् राजेन्द्र ब्रह्मणस्तीर्थमुत्तमम्।
तत्र वर्णावरः स्नात्वा ब्राह्मण्यं लभते नरंः।।
ब्राह्मणश्च विशुद्धात्मा गच्छेत् परमांगतिम्।
(महाभारत, वन पर्व 83/113)
ब्रह्मपुराण में इस तीर्थ की गणना समन्तक पंचक तीर्थ के साथ दी गई है।
समन्तपंचकं तीर्थ सुदर्शनम्।
सततं पृथिवीसव्र्व पारिप्लवपृथूदकौ।।
(ब्रह्म पुराण 25/35)
कौरवों और पाण्डवों के युद्ध में स्वयं को तटस्थ बनाए रखने के लिए बलराम ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निश्चय किया और इसी प्रसंग में भागवत पुराण इस तीर्थ पर बलराम की यात्रा वर्णन करता है जहाँ उन्होंने समुद्र वाहिनी नदी की ओर यात्रा की। यात्रा के बीच में इस तीर्थ पर निवास करने का उल्लेख है।
स्नात्वा प्रभासे सन्तप्र्य देवर्षिपितृमानवान्।
सरस्वती प्रतिस्त्रोतं ययौ ब्राह्मणसंवृतः।।
पृथूदकं बिन्दुसरस्त्रितकूपं सुदर्शनम्।
विशालं ब्रह्मतीर्थ च चक्रं प्राचीं सरस्वतीम्।।
(भागवत पुराण 10/78/18-19)
इसी श्रंृखला में वह पृथूदक तीर्थ के दर्शनीय कूपों, ब्रह्मतीर्थ, चक्रतीर्थ, प्राचीतीर्थ पर भी गए। कूर्म पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार इस तीर्थ पर पूजा अर्चना करने पर मनुष्य को ब्रह्मलोक की प्राप्ति तथा भुक्ति और मुक्ति मिलती है।
तीर्थेभ्यः परमं तीर्थ ब्रह्मतीर्थमिति श्रुतम्।
ब्रह्माणमर्चयित्वा तु ब्रह्मलोके महीयते।।
(कूर्म पुराण 36/26)
ब्रह्म पुराण में इस तीर्थ को देवताओं के लिए भी दुर्लभ तथा मनुष्यों के लिए भोग, ऐश्वर्य एवं मोक्ष देने वाला बताया गया है।
इदमप्यपरं तीर्थ देवानामपि दुर्लभम्।
ब्रह्मतीर्थमिति ख्यातं भुक्तिमुक्तिप्रदं नृणाम्।।
(ब्रह्म पुराण 113/1)
तीर्थ स्थित मन्दिर के पास एक उत्तर मध्यकालीन भवन तथा अष्टकोण बुर्जियों वाले उत्तर मध्यकालीन लाखौरी ईंटों से निर्मित घाट हैं।