International Gita Mahotsav

Ashwini Kumar Tirth, Asan

अश्विनी कुमार नामक यह तीर्थ सफीदों-जींद मार्ग पर जींद से 16 कि.मी. की दूरी पर आसन ग्राम में स्थित है। अश्विनी कुमारों से सम्बन्धित होने के कारण ही यह तीर्थ अश्विनी तीर्थ के नाम से विख्यात हुआ। सम्भवतः कालान्तर में अश्विनी का ही अपभ्रंश होने से यह गाँव आसन नाम से जाना जाने लगा। पाँचों पाण्डवों मंे नकुल एवं सहदेव इन्हीं अश्विनी कुमारों के माद्री से उत्पन्न पुत्र थे।
देवी भागवत पुराण के सप्तम स्कन्ध में वर्णित कथा के अनुसार महाराज शर्याति की पुत्री सुकन्या ने एक बार अज्ञानवश समाधिस्थ महर्षि च्यवन के नेत्र तिनके से फोड़ दिए थे जिसके प्रायश्चित स्वरूप महाराज शर्याति नेे ऋषि से क्षमायाचना कर सुकन्या का विवाह उनके साथ कर दिया। अश्विनी कुमारों ने सुकन्या के आग्रह पर च्यवन ऋषि को स्वस्थ एवं युवा शरीर प्रदान किया। महर्षि च्यवन ने अश्विनी कुमारों के कहने पर देवताओं के निमित्त होने वाले यज्ञों में उन्हें उनका उचित भाग दिलाने के लिए अपने श्वसुर महाराज शर्याति को इसी स्थान पर यज्ञ करने को कहा तथा उसमें सभी देवताओं व ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया। तब देवराज इन्द्र ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ में न लाने की बात कही, लेकिन च्यवन ऋषि ने इसमें अस्वीकृति जताई। तब देवराज इन्द्र ने वज्र का प्रहार किया लेकिन महर्षि च्यवन के तपोबल से उनका हाथ ऊपर ही उठा रह गया। ऋषि के तपोबल से प्रभावित होकर इन्द्र ने उनसे क्षमा याचना की तथा अश्विनी कुमारों को यज्ञादि धार्मिक उत्सवों में उन दोनों को उचित स्थान दिलाया।
वामन पुराण के अनुसार श्रद्धावान जितेन्द्रिय मनुष्य अश्विनी कुमारों के तीर्थ में जाकर रूपवान और यशस्वी होता है।
अश्विनो तीर्थमासाद्य श्रद्धावान यो जितेन्द्रियः।
रूपस्य भागी भवति यशस्वी च भवेन्नरः।।
(वामन पुराण 34/31)
तीर्थ स्थित एक मन्दिर में दोनों अश्विनी कुमारों को दिखाया गया है जिनके दाहिने हाथ वरद मुद्रा में और बायें हाथों में औषधियां हैं।

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