International Gita Mahotsav

 

INTERNATIONAL GITA MAHOTSAV

Kurukshetra, Haryana (15 November to 5 December 2025)

Anyajanm Tirth, Dyodhakhede

अन्यजन्म तीर्थ, ड्योढखेड़ी

अन्यजन्म नामक यह तीर्थ कैथल से 7 कि.मी. दूर दक्षिण में ड्योढखेड़ी नामक ग्राम में स्थित है।
ड्योढखेड़ी में स्थित इस तीर्थ का वर्णन महाभारत एवं वामन पुराण में मिलता है। दोनों में इस तीर्थ को सरक के पूर्व में बताया गया है लेकिन जहाँ महाभारत में इसे अम्बाजन्म कहा गया है वहीं वामन पुराण में इसे अन्यजन्म कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि महाभारत में वर्णित अंबाजन्म एवं वामन पुराण में वर्णित अन्यजन्म दोनों एक ही तीर्थ हैं।
महाभारत में इस तीर्थ को देवर्षि नारद से सम्बन्धित बताया गया है:
सरकस्य तु पूर्वेण नारदस्य महात्मनः।
तीर्थं कुरुकुल श्रेष्ठ अंबाजन्मेति विश्रुतम्।
तत्र तीर्थे नरः स्नात्वा प्राणानुत्सृज्य भारत।
नारदेनाभ्यनुज्ञातो लोकान्प्राप्नोत्यनुत्तमान्।
(महाभारत, वन पर्व 83/81-82)
अर्थात् हे कुरुकुलश्रेष्ठ ! सरक के पूर्व में महर्षि नारद का बहुविख्यात अंबाजन्म नाम का तीर्थ है। उस तीर्थ में स्नान करने एवं प्राणों को त्याग करने वाला मनुष्य नारद जी की आज्ञा से उत्तम लोकों को प्राप्त करता है।
वामन पुराण में इस तीर्थ से सम्बंधित कथा इस प्रकार है:
महापराक्रमी दानव हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद् नृसिंह रूपधारी भगवान विष्णु पशुयोनि में स्थित सिंहों से प्रेम करने लगे। तत्पश्चात् गन्धर्वों के साथ सभी देवताओं ने शिव की आराधना कर विष्णु से पुनः स्वदेह को धारण करने की प्रार्थना की। इस पर भगवान शिव ने शरभ का रूप धारण करके हजारों दिव्य वर्षों तक नृसिंह के साथ युद्ध किया। दोनों देवता युद्ध करते हुए इस तीर्थ के सरोवर में गिर पड़े। उस सरोवर के किनारे अश्वत्थ वृ़क्ष के नीचे देवर्षि नारद ध्यानावस्था में थे। जब देवर्षि नारद ने उन दोनों को देखा तो विष्णु चतुर्भुज रूप में तथा शिव लिंग के रूप में परिवर्तित हो गए। उन दोनों को देखकर नारद ने उनकी वन्दना की। नारद ने कहा कि आज मैं दोनों श्रेष्ठ देवों के दर्शन कर धन्य हुआ। आप दोनों देवश्रेष्ठों के द्वारा पवित्र किया गया मेरा यह आश्रम पवित्र और पुण्यमय हो गया। आज से तीनों लोकों में यह आश्रम अन्यजन्म के नाम से प्रसिद्ध हो जाएगा। जो व्यक्ति यहां आकर इस तीर्थ में स्नान करके अपने पितरों का तर्पण करेगा श्रद्धा से सम्पन्न उस पुरुष को यहां इन्द्रिय सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त हो जाएगा।
इस तीर्थ पर चैत्र एवं आश्विन मास की अष्टमी को मेला लगता है।

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