एक हजार महिलाओं को दे रही रोजगार, इटावा से आई मीना की हाथ से बनी आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनी आकर्षण का केंद्र, यूपी सरकार ने मीना को दो बार प्रादेशिक अवार्ड से किया सम्मानितकुरुक्षेत्र 8 दिसंबर इंसान का शौक भी उसे हुनरमंद बना देता है और फिर उस हुनर से कामयाबी भी मिल जाती है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में यूपी के इटावा से आई मीना यादव इसका उदाहरण है। उनके हाथ से बनी आर्टिफिशियल ज्वैलरी महोत्सव में आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। मीना यादव का आर्टिफिशियल ज्वेलरी बनाने का बचपन का शौक 55 साल की उम्र में भी कायम है, मगर अब उनका शौक एक कला बन चुका है। उस शौकसे उत्पन्न कला के जरिए न केवल उन्हें पहचान मिली बल्कि अब वह 1000 परिवारों को रोजगार भी दे रही है। इस कला के लिए यूपी सरकार उनको दो बार प्रादेशिक अवार्ड से सम्मानित भी कर चुकी है। अब उनका बेटा दीपक यादव उनके नक्शे कदम पर चलकर कामयाबी की सीढिय़ां चढ़ रहा है। शिल्पकार मीना यादव बताती हैं कि बचपन में वह अपनी गुडिय़ा- गुड्डों के लिए तरह तरह की मालाएं, बालियां, टॉप्स व अन्य तरह की आर्टिफिशियल ज्वेलरी घर में पड़े बेकार सामान से बनाती थी। अभी उनका बचपन खत्म भी नहीं हुआ था कि 13 साल की उम्र में उनके माता पिता ने उनकी शादी कर दी थी। तब उन्हें गुडिय़ा-पटोले छोडक़र ससुराल में चुल्हा चौका संभालना पड़ा। पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच समय भी गुजरता रहा। इस दौरान 22 साल की उम्र में उनकी जिंदगी में ऐसी घटना हुई जिसने उनके जीवन को खास बना दिया। दरअसल, हुआ यूं की जब उन्होंने एक स्थानीय मेले से अपने लिए 50 रुपये की मोतियों की एक माला खरीदी, जो घर आने पर टूट गई। उन्होंने कहा कि उस टूटी माला को देखकर उनका मन बहुत खिन्न हो गया और मीना उसी माला के मोतियों को समेट कर दूसरी माला बनाने में लीन हो गई। हालांकि उसे बनाने में बचपन के मुकाबले में कुछ ज्यादा समय लग गया। इसी दौरान उनको घर में पड़े बेकार सामान से आर्टिफिशियल कुछ सामान बनाकर उसे मार्केट में बेचने का सूझा। मीना ने बताया कि उन्होंने मार्केट से कुछ मोती लेकर उनकी माला, ब्रेसलेट, बालियां, टॉप्स व कुछ अन्य सामान बनाकर बेचना शुरू किया। उनकी कला के कद्रदान भी उनको मिलने लगे। यहां से उनके कारोबार की नींव पड़ गई। उसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे मेले में स्टॉल लगानी शुरू की, जहां उनकी कला को पहचान मिल गई। इसी बूते पर उनको उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से साल 2003-04 और 2007-08 में दो बार राज्य प्रादेशिक अवार्ड से नवाजा गया।