गीता महोत्सव में 30 सालों से मोरबीन लोक वाद्य कला का कर रहे प्रदर्शन, महोत्सव के साथ-साथ सरकार के अन्य कार्यक्रमों से ही मिल रहा है कला को संरक्षण, सालों पहले हर गांव में बन जाती थी एक बैगपाइपर पार्टी
एक जमाना था, जब एक गांव से एक मोरबीन (बैगपाइपर) लोक वाद्य कला की टीम तैयार हो जाती थी, लेकिन आधुनिकता के दौर में डीजे जैसे वाद्य यंत्रों के कारण अब प्रदेश में महज लगभग 25 लोक कलाकार ही बचे है। इस लोक कला को अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव जैसे मेलों से ही संरक्षण मिल रहा है। इन मेलों में जब बैगपाइपर की धूने बजती है तो हर कोई मस्ती में डूबकर नाचने लगता है। इस लोक कला को सरंक्षण करने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल के प्रयासों से ही अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव को लगातार बड़ा स्वरुप दिया जा रहा है और कलाकारों को आर्थिक रुप से प्रोत्साहित भी किया जा रहा है। इस प्रकार के महोत्सव में एक कलाकार को 1 हजार रुपए रोजाना की राशि हरियाणा कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग की तरफ से उपलब्ध करवाई जा रही है।
अंतर्राष्टï्रीय गीता महोत्सव में पिछले 30 सालों से अपनी बैगपाईपर पार्टी को लेकर आने वाले लीडर संघोई निवासी शाहिद कुमार और उनकी टीम के सदस्य शीशपाल निवासी चुरणे जागीर, शिवराज निवासी संतोंडी, सोमनाथ अब्दुलापुर, गुलजार निवासी हरियापुर, सतपाल निवासी संघोई, रोशन लाल निवासी भैंसी माजरा, लक्की निवासी करनाल अपने वाद्य यंत्रों के साथ लोगों का मनोरंजन करने के साथ-साथ बैगपाइपर लोक कला को जिंदा रखने का प्रयास कर रहे है। इस बैगपाइपर को ग्रामीण भाषा में मोरबीन भी कहा जाता है। कलाकार शिवराज का कहना है कि पिछले 30 सालों से अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में अपनी बैगपाइपर टीम के साथ आ रहे है। उनकों अलग-अलग गांवों से इस विधा के कलाकारों को बुलाना पड़ता है और बहुत मुश्किल से एक टीम तैयार होती है। जब महोत्सव में आना शुरु हुए तो तब एक गांव से एक टीम तैयार हो जाती थी और पूरे प्रदेश में ही इस विधा के करीब 25 कलाकार ही रह गए है।
उन्होंने कहा कि बैगपाईपर लोक कला को बचाकर रखने का प्रयास किया जा रहा है, उनकी भावी पीढ़ीयां भी अब इस लोक कला को नहीं अपना रही, सभी आधुनिकता के दौड़ में शामिल हो गए है। लेकिन स्कूलों में अब भी इस विधा का प्रशिक्षण देने का काम कर रहे है। इस प्रशिक्षण से युवा पुलिस, मिलिट्री की बैंड टुकडिय़ों में शामिल होने का प्रयास करते है। इसके अलावा जिन लोगों को इस विधा के प्रति लगाव है, वह बैगपाईपर जैसे वाद्य यंत्र को सीखने का प्रयास करता है। उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल के साथ-साथ हरियाणा कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के अधिकारियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार के प्रयासों से ही उनकी रोजी-रोटी चल रही है। इसके अलावा कभी-कभी विवाह-शादियों में बुलाया जाता है। इससे पहले किसी जमाने में हर शादी-विवाह जैसे कार्यक्रमों में बैगपाइपर पार्टी को बुलाया जाता था, लेकिन आज बैगपाइपर की जगह डीजे ने ले ली है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव, सूरजकुंड, दिल्ली प्रगति मैदान जैसे साल में होने वाले 10 से 15 कार्यक्रमों में बुलाया जाता है। इसके अलावा इस कला को जानने वाले लोग भी उन्हें समय-समय पर आमंत्रित करते है।