यूरोप व मुस्लिम देशों में पश्मीना शाल के सबसे ज्यादा कद्रदान, विदेशी शाल है महज 25 ग्राम वजनी, देश में शाल का वजन 400 ग्राम, कोरोना काल में कामकाज हुआ प्रभावित, 40 लाख के लोन की किस्त व श्रमिकों का मेहनताना देने में आई परेशानीकुरुक्षेत्र 4 दिसंबर कश्मीर की पसमीना शाल के देश ही नहीं विदेश में भी कद्रदान हैं। यूरोपीय व मुस्लिम देशों में पसीमाना शाल खूब पसंद की जाती है। कोरोना काल के दौरान पश्मीना शाल के शिल्पकारों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। न तो उनका उत्पाद विदेश में निर्यात हो पाया और न ही देश में लगने वाले शिल्प मेलों में प्रदर्शित हुआ। बहरहाल कोरोना के बादल छंटने के बाद अब शिल्प मेलों की शुरुआत हुई और शिल्पकारों में नुकसान की भरपाई की नई उम्मीद भी जगी है। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कश्मीरी शिल्पकारों की पश्मीना शाल के अच्छे खासे कद्रदान है। पश्मीना शाल लेकर पहुंचे शिल्पकार मुस्ताक अहमद व जहूर का कहना है कि देश भर में आधा दर्जन शिल्प मेलों में उनका हुनर प्रदर्शित होता है। कोरोना काल के बाद तकरीबन पौने दो वर्ष बाद शिल्प मेलों की शुरुआत हुई है। इसकी शुरुआत दिल्ली के प्रगति मैदान के बाद अब अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव से हो रही है। अब राजस्थान के उदयपुर, गुजरात व अन्य प्रदेशों में लगने वाले शिल्प मेलों से उन्हें कुछ आमदन होने की उम्मीद जगी है। वर्ष 2012 के राष्ट्रीय अवार्डी मुस्ताक अहमद बताते हैं कि कश्मीर की पसीना शाल को शिल्प मेलों में खूब पसंद किया जाता है। देश में बिकने वाली शाल का वजन तकरीबन 400 से 500 ग्राम के बीच रहता है।