कोरोना का साया छंटने के बाद अब शिल्पकारों में नई उम्मीद जगी है कि उनके हुनर के कद्रदान बढ़ेंगे। इसी उम्मीद के साथ वे अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंचे हैं कि कोरोना के दौरान उन्हें जो नुकसान उठाना पड़ा था, उसकी कुछ हद तक भरपाई हो पाए। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में 19 राज्यों से 125 शिल्पकार पहुंचे हैं। इनमें 22 शिल्पी राष्ट्रीय अवार्डी और 18 राज्य अवार्डी हैं। इनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से 21, हरियाणा व जम्मू-कश्मीर से 12-12, पश्चिम बंगाल से 11, मध्य प्रदेश व राजस्थान से 9-9 शिल्पकार महोत्सव में पहुंचे हैं। इन्हीं शिल्पकारों में से एक हैं कपड़े पर पेटिंग करने वाले दलीप कोठारी। राजस्थान के अजमेर जिले की किशनगढ़ तहसील निवासी दलीप कोठारी को वेलवेट क्लाथ पर पेटिंग बनाने में महारत हासिल है। पिछले 35 सालों से वे पेटिंग बनाने का काम कर रहे हैं। महज 10वीं पास दलीप कपड़े पर ऐसे पेटिंग बनाते हैं कि मानो सजीव चित्रण किया गया हो। दलीप बताते हैं कि कोरोना काल से शिल्पकारों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। उन्हें अपने गुजर-बसर के लिए पर्सनल लोन लेना पड़ा। कोरोना के कारण काम-धंधे चौपट हुए तो शिल्पकारों की शिल्पकला भी लॉकडाउन हो गई। नौबत यहां तक आ गई कि उनके साथ जुड़े तीन कारीगरों को भी गुजर-बसर करने के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ा। उनका कहना है कि एक मेले से उन्हें कम से 2 से 2.50 लाख की आमदन होती है, लेकिन इस बाद गीता महोत्सव में कद्रदान की कमी खल रही है। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग 300 रुपये से शुरू होती है और सबसे महंगी पेंटिंग की कीमत 2500 रुपये है।